Bollywoodbright.com,
पाकिस्तान में 21 नवंबर को सुन्नी समुदाय ने शियाओं की गाड़ियों पर घात लगाकर हमला कर दिया. इसके बाद से दोनों पक्षों के बीच हुई हिंसा में करीब 80 लोगों की जान जा चुकी है. इस मुस्लिम बहुल देश में विभिन्न समुदायों के बीच आपसी तनाव आम बात है. लेकिन इसमें भी अहमदिया मुसलमानों की हालत सबसे ख़राब है. यहां तक कि उन पर इतनी हिंसा की गई है कि वे अपनी धार्मिक पहचान छिपा रहे हैं।
ताज़ा हिंसा की वजह क्या है?
ट्विन टावर्स पर हमले के बाद सुन्नी अमेरिका से भाग गए और कई देशों में बिखरने लगे. लाखों सुन्नी भी पाकिस्तान आ गए और कई इलाकों में बसने लगे. खैबर पख्तूनख्वा प्रांत के कुर्रम में बड़ी शिया आबादी है। उन्होंने अमेरिका से लौटे सुन्नियों को अपने यहां नहीं आने दिया. इससे दरार बढ़ती चली गई. बाद में जनरल जिया उल हक की सरकार ने शियाओं को तोड़ने के लिए कुर्रम में सुन्नियों को बसाना शुरू किया. इसके बाद से तनाव जारी है.
अहमदिया मुसलमानों पर शुरू से ही अत्याचार
धार्मिक तनाव सिर्फ शियाओं और सुन्नियों के बीच नहीं है, अहमदिया मुसलमान इसके सबसे बड़े शिकार हैं. अहमदिया मुसलमानों के ख़िलाफ़ पहला दंगा पचास के दशक में लाहौर में हुआ था। पाकिस्तान के लोगों ने उन्हें काफिर कहकर हिंसा मचाना शुरू कर दिया. हालात इतने ख़राब हो गए कि तीन महीने के लिए मार्शल लॉ लगाना पड़ा. लाहौर दंगे के नाम से मशहूर इस हिंसा में कितने लोग मारे गए, इसके अलग-अलग अनुमान हैं। ऐसा माना जाता है कि कुछ सौ से लेकर हजारों अहमदी मारे गए।
दूसरे मुसलमानों की तरह यह समुदाय भी कुरान और पैगंबर को मानता है, लेकिन इसमें एक बड़ा अंतर है. अहमदिया मुसलमान मोहम्मद साहब को आखिरी पैगंबर नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि उनके गुरु यानी मिर्जा गुलाम अहमद मोहम्मद के बाद पैगंबर थे. उन्होंने साल 1889 में अहमदिया मुस्लिम समुदाय की नींव रखी. दुनिया भर में इस्लाम को मानने वाले लोग मोहम्मद को आखिरी पैगंबर मानते हैं. यही बात अहमदिया मुसलमानों को बाकियों से अलग बनाती है.
इसकी शुरुआत कैसे हुई?
अहमदिया समुदाय के संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद थे, जिनका जन्म पंजाब के कादियान में हुआ था। यही वजह है कि कई बार इन्हें मानने वाले खुद को कादियानी भी कहते हैं. मार्च 1889 में गुलाम अहमद ने लुधियाना में एक बैठक की, जहाँ उन्होंने खुद को खलीफा घोषित कर दिया। उसी दिन वहां के कई लोगों ने गुलाम अहमद की बातें मान लीं, जिसके बाद अहमदिया जमात बढ़ती गई.
किस देश में कितनी आबादी?
अलग-अलग आंकड़े मानते हैं कि इस वक्त दुनिया में 10 से 20 करोड़ अहमदी होंगे, जो कुल मुस्लिम आबादी का 1 फीसदी है. आंकड़ों में इतना बड़ा अंतर इसलिए है क्योंकि ये समुदाय अक्सर अपनी धार्मिक पहचान गुप्त रखता है.
लगभग 40 से 60 लाख के साथ इनकी पाकिस्तान में सबसे बड़ी आबादी है। दूसरे स्थान पर नाइजीरिया और उसके बाद तंजानिया है। अहमदिया कई अफ़्रीकी देशों में इसलिए बसे हुए हैं क्योंकि भारत और पाकिस्तान में उनका लगातार विरोध होता रहा, जबकि अफ़्रीका उनके प्रति उदार था। हालाँकि, पाकिस्तान में इस समुदाय की वास्तविक जनसंख्या को लेकर विवाद था। दरअसल, यहां इन पर इतनी सख्ती है कि ये लोग अपनी धार्मिक पसंद जाहिर करने से बचते हैं।
पाकिस्तान में उनकी हालत सबसे ख़राब है
वहां के लोग उन्हें मुसलमान नहीं मानते. कानून के मुताबिक, अहमदिया भी खुद को इस्लाम से संबंधित नहीं बता सकते या अपने धर्म का प्रचार नहीं कर सकते, अन्यथा उन्हें 3 साल तक की जेल की सजा हो सकती है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो सत्तर के दशक में ये नियम लाए थे. उनकी सरकार ने इन लोगों को अल्पसंख्यक और वह भी गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया। इसके बाद वहां के मुसलमान समय-समय पर अहमदिया समुदाय पर हमले करते रहे। उनके कब्रिस्तानों को आम मुसलमानों के कब्रिस्तानों से अलग कर दिया गया। मस्जिदें तोड़ी जाने लगीं. उनके खिलाफ अक्सर ईशनिंदा के मामले दर्ज होते रहते हैं.
हज पर जाने पर रोक
अहमदिया मुसलमानों की आस्था अन्य मुसलमानों के लिए इतनी घृणित है कि हज पर जाने पर भी आधिकारिक तौर पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि हर मुसलमान को जीवन में एक बार मक्का जरूर जाना चाहिए, लेकिन सऊदी अरब ने अहमदियों के लिए दरवाजे बंद कर दिए हैं। यहां तक कि सऊदी भी उन्हें मुसलमान नहीं मानता. ऐसे में अगर इस समुदाय का कोई भी व्यक्ति धार्मिक यात्रा के बारे में सोचकर वहां जाता है तो उसे हिरासत में लिया जा सकता है.
एक और बात अहमदियों को बाकियों से बिल्कुल अलग बनाती है। यह समुदाय भगवान श्रीकृष्ण को ईश्वर का दूत भी मानता है। अहमदिया मुस्लिम समुदाय की आधिकारिक वेबसाइट अल इस्लाम में इसका जिक्र है. यह वर्ग दूसरे धर्मों की बातें भी सुनता है और कुछ हद तक उन्हें स्वीकार भी करता है। जैसे वे बुद्ध और ईसा को भी पैगंबर मानते हैं, जिन्हें लोगों तक ईश्वर का संदेश पहुंचाने का माध्यम बनना चाहिए.
पाकिस्तान में कौन से अन्य मुस्लिम समुदाय हैं
पाकिस्तान में अधिकांश मुस्लिम आबादी सुन्नी है, जो 80 प्रतिशत से अधिक है। इसके अलावा 10 से 15 फीसदी शिया हैं. मुसलमानों में कई छोटे समुदाय भी हैं, जैसे, इस्माइली, बोहरा और ज़ैदी। 1974 में पाकिस्तान के संविधान द्वारा गैर-मुस्लिम घोषित अहमदिया समुदाय भी एक महत्वपूर्ण संप्रदाय है। इस समुदाय के धार्मिक अधिकारों पर कई तरह की पाबंदियां हैं. सूफी परंपरा पाकिस्तान में भी है. इसके अलावा देवबंदी और बरेलवी जैसे संप्रदाय भी हैं।